चुनाव आयोग ने बिहार सहित पूरे देश में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण का आदेश जारी किया है। चूंकि बिहार में आगामी महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए इस अभियान की शुरुआत बिहार से की गई है। आयोग का उद्देश्य है कि मतदाता सूची को अद्यतन, त्रुटिरहित और पारदर्शी बनाया जाए ताकि चुनाव निष्पक्ष और विश्वसनीय हों।इसके तहत मतदाता को अपनी पहचान साबित करने के लिए 11 प्रकार के वैकल्पिक दस्तावेजों में से किसी एक का प्रमाण देना होगा, जैसे—आधार कार्ड, राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, पेंशन दस्तावेज आदि। चुनाव आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया फर्जी मतदाताओं को हटाने और वास्तविक मतदाताओं को सूची में बनाए रखने के लिए आवश्यक है।हालाँकि, विपक्ष इस प्रक्रिया को लेकर खासा नाराज है। उनका आरोप है कि यह आदेश गरीब, अनपढ़ और पलायन कर चुके मजदूरों के अधिकारों पर चोट है। वे कहते हैं कि कई मजदूरों और गरीब तबकों के पास इनमें से कोई भी दस्तावेज उपलब्ध नहीं होता, जिससे उनके नाम मतदाता सूची से हट सकते हैं। इससे चुनाव में उनका प्रतिनिधित्व खत्म हो जाएगा और लोकतंत्र कमजोर होगा।
विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग की मंशा पर सवाल खड़े करते हुए इसे सत्ता पक्ष को लाभ पहुंचाने की “प्रयोजित योजना” करार दिया है। उन्होंने आशंका जताई कि चुनिंदा क्षेत्रों में खास समुदायों या वर्गों के नाम सूची से हटाए जा सकते हैं, जिससे चुनावी गणित प्रभावित हो सकता है।वहीं, चुनाव आयोग का कहना है कि पुनरीक्षण कार्य पूरी तरह निष्पक्ष है और यदि किसी को दस्तावेज़ उपलब्ध कराने में कठिनाई है, तो उसे सहायता दी जाएगी। आयोग ने यह भी कहा है कि नाम हटाने से पहले व्यापक सत्यापन किया जाएगा और किसी को अनुचित रूप से सूची से बाहर नहीं किया जाएगा।अब बड़ा सवाल यह है—क्या यह पुनरीक्षण लोकतंत्र को सशक्त बनाएगा या फिर इससे नए विवादों की नींव रखी जाएगी?विपक्ष आखिर इतना घबराया क्यों है।मतदाता पुनरीक्षण में सहयोग कर सभी वास्तविक मतदाताओं का नाम जोड़ने में मदद की जरूरत है।वर्तमान समय में लगभग लोगो के पास भारतीय नागरिक होने का कई दस्तावेज है।विपक्ष की ओर से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई तो फिर आंदोलन करने के पीछे मंशा को समझना आसान होगा।