30 वर्षों बाद साक्ष्य के अभाव में 38 अभियुक्त बरी।
शेखपुरा जिले के टाल क्षेत्र में 1993 में घटित चर्चित मूडवरिया नरसंहार के सभी 38 अभियुक्तों को बुधवार को अदालत ने साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया। इस नरसंहार में पांच लोगों की हत्या, महिलाओं के साथ दुष्कर्म और दर्जनों लोगों के घायल होने के आरोप थे। घटना के बाद 100 से अधिक लोगों को अभियुक्त बनाया गया था, जिनमें से कई की मौत हो चुकी है और कुछ पहले ही रिहा हो चुके थे।
दो जातियों के बीच वर्चस्व की लड़ाई
1 जनवरी 1993 को कोरमा थाना क्षेत्र के भदौसी गांव में दलित समाज ने अति पिछड़ा वर्ग के लोगों पर हमला किया था, जिसमें धारदार हथियार और गोलीबारी से पांच लोगों की निर्मम हत्या हुई। इसके जवाब में अति पिछड़ा वर्ग ने भी दलित समुदाय के चार लोगों की हत्या कर दी। घटना के दौरान महिलाओं के साथ दुष्कर्म और हिंसा की घटनाओं ने पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया था।
30 वर्षों की लंबी कानूनी लड़ाई
मामले की सुनवाई पहले मुंगेर न्यायालय में शुरू हुई थी। शेखपुरा जिला न्यायालय बनने के बाद, यह मामला यहां स्थानांतरित हुआ। अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार अधिनियम के विशेष न्यायाधीश मधु अग्रवाल ने बुधवार को फैसला सुनाते हुए बच्चू धानुक, राम गुलाम महतो, राम जी महतो समेत 38 अभियुक्तों को बरी कर दिया।
दूसरे पक्ष को मिल चुकी है सजा
इस नरसंहार के दूसरे पक्ष के अभियुक्तों को पूर्व में सजा दी जा चुकी है। इसी साल 16 अगस्त को अदालत ने हत्या के एक मामले में मुडवरिया गांव के मोती ढाढी को आजीवन कारावास और 20,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी।
जातीय संघर्ष और नरसंहार का दौर
1990 के दशक में शेखपुरा जिले के टाल क्षेत्र में जातीय संघर्ष और नरसंहार की घटनाएं बढ़ गई थीं। मूडवरिया नरसंहार उन घटनाओं में से एक है, जिसकी तपिश आज भी महसूस की जाती है। 30 वर्षों की लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद इस मामले का पटाक्षेप हो गया, लेकिन पीड़ित परिवारों को न्याय की उम्मीद अधूरी ही रह गई।